Shiksha Samvad

Shiksha Samvad

International Journal of Multidisciplinary Research

International Open Access, Peer-reviewed & Refereed Journal | ISSN: 2584-0983 (Online)

Call for Paper: Vol. 2 – Issue 3 – March 2025 (Last Date- 30 March 2025)

ब्रिटिश भारत में पश्चिमी शिक्षा और सामाजिक परिवर्तनः सुधार और पुनर्जागरण (1800-1947)

Vol. 03, Issue 01, pp. 99–109  |  Published: 11 September 2025

Author: मुन्ना गुप्ता

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सारांश
ब्रिटिश भारत में 1800 से 1947 तक का कालखंड भारतीय समाज के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस अवधि में पश्चिमी शिक्षा का प्रवेश केवल ज्ञान और बौद्धिक दृष्टिकोण के विस्तार तक सीमित नहीं रहा बल्कि उसने भारतीय समाज के हर पहलू पर गहरा प्रभाव डाला। परंपरागत शिक्षा व्यवस्था, जो गुरुकुल, मदरसा और टोल प्रणाली पर आधारित थी, सीमित वर्ग तक ही पहुंची हुई थी और उसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण, आलोचनात्मक चेतना और सामाजिक जागरूकता का अभाव था। अंग्रेजों के आगमन के साथ जब पश्चिमी शिक्षा की नींव रखी गई तो यह भारतीय समाज में आधुनिक चेतना, वैज्ञानिक दृष्टि और लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास का माध्यम बनी। 1813 के चार्टर एक्ट, 1835 में मैकाले की शिक्षा नीति, 1854 के वुड डिस्पैच और आगे चलकर विभिन्न शिक्षा आयोगों की सिफारिशों ने भारत में आधुनिक शिक्षा की संरचना को आकार दिया। इस शिक्षा ने एक शिक्षित मध्यम वर्ग का निर्माण किया, जिसने सामाजिक सुधार, पुनर्जागरण और स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी। पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव से राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के उन्मूलन का आंदोलन चलाया, ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह और महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया, वहीं महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने स्त्रियों और दलितों की शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। इस काल में सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल विवाह, जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता पर प्रहार हुआ तथा समाज में समानता, स्वतंत्रता और न्याय की चेतना जागृत हुई। बंगाल पुनर्जागरण के माध्यम से तार्किकता, स्वतंत्र चिंतन और मानवतावाद की धारा विकसित हुई जबकि आर्य समाज और ब्रह्म समाज जैसे आंदोलनों ने धार्मिक सुधार और शिक्षा का नया स्वरूप प्रस्तुत किया साथ ही अलीगढ़ आंदोलन ने मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा और प्रगतिशील विचारों से जोड़ा। शिक्षा ने न केवल सामाजिक सुधारकों को जन्म दिया बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं को भी तैयार किया। कांग्रेस की स्थापना, स्वदेशी आंदोलन, प्रेस और पत्रिकाओं की भूमिका, गांधीजी के नेतृत्व में जन आंदोलन इन सभी की पृष्ठभूमि में पश्चिमी शिक्षा का योगदान प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है। हालांकि, इस शिक्षा की कुछ सीमाएँ भी रहीं जैसे इसका लाभ शहरी और उच्च वर्ग तक सीमित होना, ग्रामीण और स्त्री शिक्षा का पिछड़ापन तथा ब्रिटिश नीतियों का प्रशासनिक हितों तक सीमित होना। इसके बावजूद, इसमें कोई संदेह नहीं कि पश्चिमी शिक्षा ने भारतीय समाज में आधुनिकता, तार्किकता और सामाजिक न्याय की चेतना को जन्म दिया, जिसने सुधार और पुनर्जागरण के मार्ग को प्रशस्त किया और अंततः स्वतंत्रता की लड़ाई को वैचारिक आधार प्रदान किया। अतः 1800 से 1947 तक का काल भारत में पश्चिमी शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन की परस्पर जुड़ी हुई प्रक्रियाओं का युग था, जिसने न केवल भारत के सामाजिक ढांचे को नया स्वरूप दिया बल्कि आधुनिक भारत के निर्माण की नींव भी रखी।

मुन्ना गुप्ता, “ब्रिटिश भारत में पश्चिमी शिक्षा और सामाजिक परिवर्तनः सुधार और पुनर्जागरण (1800-1947) Shiksha Samvad International Open Access Peer-Reviewed & Refereed Journal of Multidisciplinary Research, ISSN: 2584-0983 (Online), Volume 03, Issue 01, pp.99-109, September 2025. Journal URL: https://shikshasamvad.com/

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